Wednesday, August 2, 2023

मुंशी प्रेम चंद जन्म दिवस 31 जुलाई 2023

 

 


नाम

मुंशी प्रेमचंद

मूल नाम

धनपत राय श्रीवास्तव

उर्दू भाषा की रचनाओं में नाम

नवाबराय

जन्म

31 जुलाई, 1880

जन्म का स्थल

लमही गांव, जिला-वारणशी, उत्तरप्रदेश

पिता का नाम

अजायबराय

माता का नाम

आनन्दी देवी

मृत्यु

8 अक्टूबर 1936

पेशा

लेखक तथा अध्यापक

भाषा

हिंदी तथा उर्दू

पत्नी

शिवरानी देवी

प्रमुख रचनाएँ

सेवासदन, गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दरोगा इत्यादि

विधाएँ

निबंध, नाटक, उपन्यास, कहानी


प्रेमचंद के जीवन का संक्षिप्त विवरण

मुंशी प्रेमचंद जी का असली नाम (Munshi premchand real name) धनपत राय श्रीवास्तव जी है जो की प्रेमचंद के नाम से जाने जाते थे, इनका जन्म 31 जुलाई 1880 तथा मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई थी। ये हिंदी तथा उर्दू के प्रसिद्ध तथा सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार तथा कहानीकारक थे। इन्होने प्रेमाश्रम, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, इत्यादि लगभग डेढ़ दर्जन के लगभग उपन्यास लिखे हैं तथा पूस की रात, बड़े घर की बेटी, कफन, पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, बूढी काकी जैसे तीन सौ से भी अधिक कहानियों को उनके द्वारा लिखे गए हैं।

 

प्रेम चंद जी का जन्म वारणशी जिले के लमही गांव के कायस्थ परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था, उनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो की लमही गाँव में डाक मुंशी थे तथा उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था तथा इनको नवाब राय तथा मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। प्रेम चंद जी हिंदी तथा उर्दू के एक महान लेखक थे, उपन्यास के क्षेत्र में इनका अमूल्य योगदान को देखकर बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जी ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर सम्बोधित किया। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू तथा फ़ारसी भाषा में हुई।

जब प्रेमचंद जी की उम्र 7 साल थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया था और 16 वर्ष की उम्र में उनके पिता की भी मृत्यु हो गयी जिस कारण उनका जीवन काफी संघर्षो से गुजरा है। जब प्रेमचंद जी की उम्र 15 वर्ष थी तब पिता के द्वारा उनका बाल विवाह करवा दिया गया जो की आगे चलकर सफल नहीं हो सका। प्रेमचंद जी विधवा विवाह के बहुत अधिक समर्थन वादी थे इसलिए उन्होंने 1906 में शिवरानी देवी जी से किया। उनकी तीन संताने भी थी जिनका नाम श्रीपत रायअमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव था। इनको बचपन से पढ़ने का बहुत ही शोक था, 13 वर्ष की आयु में ही इन्होने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था।

1898 में इनके द्वारा मैट्रिक की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद वह किसी स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के पद पे नियुक्त हो गए। शिक्षक की नौकरी के साथ साथ उन्होंने पढाई जारी रखी और 1990 में उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी, दर्शन तथा इतिहास के साथ इंटर उत्तीर्ण किया। बाद में प्रेमचंद जी के द्वारा 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी तथा इतिहास को लेकर बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की। सन 1919 में बी.ए. को उत्तीर्ण करने के बाद उनको शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त कर दिया गया।

 

 

मुंशी प्रेमचंद जी का साहित्यिक जीवन

वर्ष 1901 से ही प्रेमचंद जी का साहित्यिक जीवन शुरू हो गया था, शुरुआत में वो नवाब रे के नाम से उर्दू में लिखा करते थे, उनका पहला उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद है यह धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास का हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। मुंशी प्रेमचंद जी के द्वारा दूसरा उपन्यास हमखुर्मा व हमसवाब के नाम से प्रकाशित हुआ जो की हिंदी में प्रेमा नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। 1908 में इनके द्वारा पहला कहानी संग्रह सोजे वतन जो की देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण था प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में देशभक्ति की भावना होने के कारण अंग्रेजों के द्वारा इस संग्रह कोप्रतिबंधित कर लिया गया तथा इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर ली गयी और भविष्य में नवाब राय को न लिखने की हिदायत दी गयी।

इसी कारणवश उन्होंने अपना नाम नवाबराय से बदलकर प्रेमचंद रख लिया था, यह नाम उनको दयानारायन निगम द्वारा दिया गया था। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी” जमाना पत्रिका में 1910 में प्रकाशित हुई। 1915 में उस समय की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसंबर में उनकी पहली कहानी सौतनाम से प्रकाशित हुई। इसके बाद 1918 में उनका पहला उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के अत्यधिक लोकप्रियता के कारण प्रेमचंद जी को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया। इनके द्वारा लगभग 300 कहानिया तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषा में लिखे गए।

कहानी

प्रेमचंद जी के अधिकतम कहानियों में मध्यम तथा निम्न श्रेणी के का चित्रण किया गया हैडॉ॰ कमलकिशोर गोयनका जी के द्वारा मुंशी प्रेमचंद जी की सभी हिंदी उर्दू कहानियों को रचनावली नाम से प्रकाशित किया गया है। इनके अनुसार प्रेमचंद जी के द्वारा कुल 301 कहानियां लिखी गयी हैं इनमे से भी 3 अप्राप्य हैं। मुंशी प्रेमचंद जी का पहला कहानी संग्रह सोजे वतन के नाम से प्रकाशित हुआ।

नाटक

प्रेमचंद जी के द्वारा संग्राम, कर्बला तथा प्रेम की वेदी जैसे नाटकों की रचना की। ये नाटक शिल्प तथा संवेदना के स्तर पर लेकिन उन्हें नाटकों में कहानियो तथा उपन्यासों के जितनी सफलता नहीं मिल पाई।













प्रेमचंद जी का जन्म कब हुआ ?

प्रेम चंद जी का जन्म वारणशी जिले के लमही गांव के कायस्थ परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु कब हुई ?

मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई थी।

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ कौन कौन सी हैं ?

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ सेवासदन, गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दरोगा इत्यादि थी।

मुंशी प्रेमचंद जी की शादी किससे हुई थी ?

जब प्रेमचंद जी की उम्र 15 वर्ष थी तब पिता के द्वारा उनका बाल विवाह करवा दिया गया जो की आगे चलकर सफल नहीं हो सका। प्रेमचंद जी विधवा विवाह के बहुत अधिक समर्थन वादी थे इसलिए उन्होंने 1906 में शिवरानी देवी जी से किया।

मुंशी प्रेमचंद के माता पिता का नाम क्या था ?

मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो की लमही गाँव में डाक मुंशी थे तथा उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था।



Tuesday, July 25, 2023

नई शिक्षा नीति 2020



 नई शिक्षा नीति 2020

परिचय

भारत में नई शिक्षा नीति एक विस्तृत और व्यापक नीति है जिसका उद्देश्य देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार और आधुनिकीकरण करना है। नीति, जिसे हाल ही में भारत सरकार द्वारा अपनाया गया था, शिक्षा के क्षेत्र में कई दीर्घकालिक चुनौतियों और मुद्दों को संबोधित करने का प्रयास करती है, जैसे कम सीखने के परिणाम, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की कमी, और अधिक नवाचार और प्रतिस्पर्धात्मकता की आवश्यकता।

नई शिक्षा नीति पर एक नजर

भारत में नई शिक्षा नीति, जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के रूप में जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा जुलाई 2020 में जारी की गई थी। यह नीति 1986 की पिछली राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की जगह लेती है और पहली व्यापक समीक्षा को चिह्नित करती है। इस नीति में शिक्षा का पाठ्यक्रम 5+3+3+4 के मॉडल पर तैयार किया गया है, जो पहले 10+2 के हिसाब से था।

NEP 2020 भारत में शिक्षा के भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण की रूपरेखा तैयार करता है, जिसका लक्ष्य 2030 तक देश को “वैश्विक ज्ञान महाशक्ति” में बदलना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, नीति में कई महत्वपूर्ण सुधारों और परिवर्तनों की रूपरेखा तैयार की गई है। शिक्षा क्षेत्र में लागू किया गया, जिसमें शामिल हैं:-

पाठ्यचर्या में सुधार:- NEP 2020 अंतःविषय और अनुभवात्मक शिक्षा के साथ-साथ भारतीय भाषाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को शामिल करने पर ध्यान देने के साथ भारत में शिक्षा पाठ्यक्रम में बड़े बदलाव की मांग करता है। नीति शिक्षण और सीखने में प्रौद्योगिकी के उपयोग को भी बढ़ावा देती है और परियोजना-आधारित और समस्या-आधारित शिक्षा जैसे नवीन शैक्षणिक दृष्टिकोणों के उपयोग को प्रोत्साहित करती है।

शिक्षक प्रशिक्षण:- NEP 2020 उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षक प्रशिक्षण और पेशेवर विकास के महत्व पर जोर देता है और शिक्षक शिक्षा और प्रमाणन की देखरेख के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षक आयोग की स्थापना का आह्वान करता है। नीति शिक्षक प्रशिक्षण और पेशेवर विकास के लिए प्रौद्योगिकी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के उपयोग को भी प्रोत्साहित करती है।

शिक्षा तक पहुंच:- NEP 2020 का उद्देश्य भारत में शिक्षा तक पहुंच बढ़ाना है, खासकर वंचित और वंचित समूहों के लिए। इसे प्राप्त करने के लिए, नीति प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) कार्यक्रमों के विस्तार और वैकल्पिक शिक्षा मॉडल जैसे सामुदायिक विद्यालयों और खुले विद्यालयों की स्थापना की मांग करती है।

उच्च शिक्षा:- NEP 2020 भारत में उच्च शिक्षा के लिए कई सुधार पेश करता है, जिसमें राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क (एनएचईक्यूएफ) की स्थापना और उच्च शिक्षा में अंतर्राष्ट्रीयकरण और सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है। नीति व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा कार्यक्रमों के विस्तार और उच्च शिक्षा में अनुसंधान और नवाचार का समर्थन करने के लिए एक राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन की स्थापना का भी आह्वान करती है।

प्रौद्योगिकी का एकीकरण:- NEP 2020 शिक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देता है, जिसमें शिक्षा तक पहुंच में सुधार, शिक्षण और सीखने को बढ़ाने और अनुसंधान और नवाचार की सुविधा के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। नीति शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी मंच (NETF) की स्थापना का आह्वान करती है, और ऑनलाइन और मिश्रित शिक्षण कार्यक्रमों के विकास को प्रोत्साहित करती है।

नई शिक्षा नीति के लाभ और चुनौतियां

भारत में नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का उद्देश्य देश में शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार लाना है। यदि सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाता है, तो नीति भारत में शिक्षा क्षेत्र के लिए कई लाभ ला सकती है, जिनमें निम्न शामिल हैं:-

सीखने के बेहतर परिणाम:- NEP 2020 शिक्षा में नवीन शैक्षणिक दृष्टिकोण और प्रौद्योगिकी के एकीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे छात्रों के सीखने के परिणामों में सुधार हो सकता है।

शिक्षा तक अधिक पहुंच:- NEP 2020 प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) कार्यक्रमों के विस्तार और सामुदायिक स्कूलों और खुले स्कूलों जैसे वैकल्पिक शिक्षा मॉडल की स्थापना का आह्वान करता है, जो हाशिये पर रहने वाले और वंचित समूहों के लिए शिक्षा तक पहुंच बढ़ा सकते हैं।

प्रतिस्पर्धा में वृद्धि:- NEP 2020 का उद्देश्य अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देकर और उच्च शिक्षा में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करके भारत में शिक्षा प्रणाली को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है।

सांस्कृतिक और भाषाई विविधता:- NEP 2020 शिक्षा पाठ्यक्रम में भारतीय भाषाओं और सांस्कृतिक मूल्यों को शामिल करने का आह्वान करता है, जो देश में सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को संरक्षित करने और बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

हालाँकि, NEP 2020 को कई चुनौतियों और आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ रहा है, जिनमें शामिल हैं:

फंडिंग:- NEP 2020 के कार्यान्वयन के लिए बुनियादी ढांचे, शिक्षक प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है, जो भारत में मौजूदा आर्थिक माहौल को देखते हुए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

परिवर्तन का प्रतिरोध:- NEP 2020 शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार पेश करता है, और शिक्षकों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों से इन परिवर्तनों का विरोध हो सकता है।

गुणवत्ता नियंत्रण:- NEP 2020 सामुदायिक स्कूलों और ओपन स्कूलों जैसे वैकल्पिक शिक्षा मॉडल के विस्तार का आह्वान करता है, जो इन सेटिंग्स में प्रदान की जा रही शिक्षा की गुणवत्ता के बारे में चिंता पैदा कर सकता है।

सीमित कार्यान्वयन:- NEP 2020 एक व्यापक और महत्वाकांक्षी नीति है, और इसमें एक जोखिम है कि इसके सभी प्रावधानों को प्रभावी ढंग से या बड़े पैमाने पर लागू नहीं किया जाएगा।

निष्कर्ष

भारत में नई शिक्षा नीति (NEP 2020) एक व्यापक नीति है जिसका उद्देश्य देश की शिक्षा प्रणाली में सुधार और आधुनिकीकरण करना है। यह नीति पाठ्यचर्या सुधार, शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण सहित कई महत्वपूर्ण परिवर्तन और सुधार पेश करती है। यदि सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाता है, तो NEP 2020 भारत में शिक्षा क्षेत्र के लिए कई लाभ ला सकता है, जैसे सीखने के बेहतर परिणाम, शिक्षा तक अधिक पहुंच और प्रतिस्पर्धा में वृद्धि। हालाँकि, नीति को कई चुनौतियों और आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ता है, जिसमें धन, परिवर्तन का प्रतिरोध, गुणवत्ता नियंत्रण और सीमित कार्यान्वयन शामिल हैं। NEP 2020 की सफलता इन चुनौतियों का समाधान करने की सरकार की क्षमता पर निर्भर करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि शिक्षा क्षेत्र में नीति को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए|



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Friday, July 14, 2023

कारगिल दिवस:पराक्रम गाथा

 

कारगिल विजय दिवस 2023: पराक्रम और शौर्य की कहानी

आज 26 जुलाई को देश, विजय दिवस के रूप में कारगिल युद्ध की 23वीं वर्षगांठ मना रहा है। 1971 के युद्ध में मुंह की खाने के बाद लगातार छेड़े गए छद्म युद्ध के रूप में पाकिस्तान ने ऐसा ही छ्द्म हमला कारगिल में 1999 में किया। इस लेख में स्तंभकार राजेश वर्मा याद कर रहे हैं वीर सैनिकों उनके महान कारनामों को और सलाम कर रहे हैं हमारे सैनिकों की शहादत को।
विजय दिवस के रूप में 26 जुलाई यानी आज कारगिल युद्ध की 22वीं वर्षगांठ देशभर में मनाई जा रही है। 1971 के युद्ध में मुंह की खाने के बाद लगातार छेड़े गए छद्म युद्ध के रूप में पाकिस्तान ने ऐसा ही छ्द्म हमला कारगिल में 1999 के दौरान किया।
18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल का यह युद्ध तकरीबन दो माह तक चला, जिसमें 527  वीर सैनिकों की शहादत देश को देनी पड़ी। 1300 से ज्यादा सैनिक इस जंग में घायल हुए। पाकिस्तान के लगभग 1000 से 1200 सैनिकों की इस जंग में मौत हुई। भारतीय सेना ने अदम्य साहस से जिस तरह कारगिल युद्ध में दुश्मन को खदेड़ा, उस पर हर देशवासी को गर्व है।
 
हिमाचल प्रदेश की वीर भूमि में जन्मे 52 वीर सैनिकों ने भी इस युद्ध में शहादत का जाम पिया। इन्हीं में से कुछ नाम ऐसे भी हैं, जिनकी वीर गाथा आज भी हर प्रदेश वासी की जुबान पर है। कैप्टन विक्रम बत्रा जब पहली जून 1999 को कारगिल युद्ध के लिए गए तो उनके कंधों पर राष्ट्रीय श्रीनगर-लेह मार्ग के बिलकुल ठीक ऊपर महत्वपूर्ण चोटी 5140 को दुश्मन फौज से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी थी।
 
आसान नहीं थी कारगिल की जंग 
यह दुर्गम क्षेत्र मात्र एक चोटी ही नहीं थी यह तो करोड़ों देशवासियों के सम्मान की चोटी थी जिसे विक्रम बत्रा ने अपनी व अपने साथियों की वीरता के दम पर 20 जून 1999 को लगभग 3 बजकर 30 मिनट पर अपने कब्जे में ले लिया। उनका रेडियो से विजयी उद्घोष 'यह दिल मांगे मोर....जैसे ही देश वासियों को सुनाई दिया हर एक भारतीय की नसों में ऐसा जज्बा भर गया और हर एक की जुबान भी यह दिल मांगे मोर... ही कह रही थी। 


अगला पड़ाव चोटी 4875 का था यह अभियान भी विक्रम बत्रा की ही अगुवाई में शुरू हुआ। विक्रम बत्रा बहुत से पाकिस्तानी सैनिकों को मारते हुए आगे बढ़े लेकिन इस बीच वह अपने घायल साथी लेफ्टिनेंट नवीन को बचाने के लिए बंकर से बाहर निकल आए। 'तुम बीबी- बच्चों वाले हो यहीं रुको बाहर मैं जाता हूं'  मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण वीर योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा के ये शब्द अपनी ही टीम के एक सुबेदार के लिए थे।


घायल लेफ्टिनेंट नवीन को बचाते हुए जब एक गोली विक्रम बत्रा के सीने में लगी तो भारत मां के इस लाल ने भारत माता की जय कहते हुए अंतिम सांस ली, इससे आहत सभी सैनिक गोलियों की परवाह किए बिना दुश्मन पर टूट पड़े और चोटी 4875 को आखिरकार फतह किया। इस वीरता के चलते 15 अगस्त 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से नवाजा गया।


शहीदों की शहादत की कहानियां  

बिलासपुर जिले से संबंध रखने वाले परमवीर चक्र विजेता संजय कुमार की वीर गाथा भी इसी तरह की है-


संजय अपने 11 साथियों के साथ कारगिल में मस्को वैली प्वाइंट 4875 के फ्लैट टॉप पर तैनात थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंचाई का फायदा उठाते हुए टीम के 8 सैनिकों को घायल कर दिया जबकि 2 शहीद हो गए। संजय को 3 गोलियां लग चुकी थी और राइफल भी खाली थी लेकिन फिर भी इस साहसी योद्धा ने घायल अवस्था में भी दुश्मन के बंकर में घुसकर उनकी ही बंदूक छीन कर दुश्मन के 3 सैनिकों को मार कर दूसरे मुख्य बंकर पर कब्जा कर लिया। इस अदम्य साहस के लिए संजय को भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।


कुल्लू जिला के आनी से एक और वीर सैनिक डोला राम की वीर-गाथा भी देश प्रेम के लिए प्रेरित करती है। डोला राम ने अपने 2 साथियों की सहायता से बिना हथियारों के सियाचिन ग्लेशियर की चोटी पर बंकर में छिपे 17 घुसपैठियों को मौत की नींद सुला दिया। डोला राम देश के लिए शहीद होकर भी अमर हो गए।
 
कारगिल युद्ध में जब तक ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर के नाम का जिक्र न हो तब तक यह विजयी गाथा अधूरी है। प्रदेश के कुल्लू व मंडी जिला की सीमा पर स्थित गांव नंगवाई से संबंध रखने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर के नेतृत्व में सैन्य टीम ने तोलोलिंग चोटी पर कब्जा किया तो किसी ने नहीं सोचा था की यह पड़ाव इस युद्ध का टर्निंग प्वाइंट साबित होगा।

18 ग्रेनेडियर्ज के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल खुशहाल ठाकुर की इस कमान में सबसे अधिक सैनिकों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इतनी बड़ी संख्या में नुकसान का सीधा कारण दुश्मन के ऊंचाई पर बैठ कर वार करना था। इस नुकसान से स्तब्ध कर्नल खुशहाल ठाकुर ने खुद कमान संभाली और विजयी रथ को मंजिल तक पहुंचा दिया। 13 जून का दिन था जब 18 ग्रेनेडियर्ज ने 2 राजपूताना राइफल्स के साथ मिलकर तोलोलिंग पर कब्जा किया। इस सफलता की भारी कीमत घायल लैफ्टिनैंट कर्नल विश्वनाथन ने कर्नल खुशहाल ठाकुर की गोद में अपने प्राण त्याग कर चुकाई थी।

कर्नल खुशहाल ठाकुर ने अपनी यूनिट के साथ पहले तोलोलिंग व फिर सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर विजय पताका फहराई।  भारतीय सैन्य इतिहास में रिकार्ड बनाते हुआ इस विजय अभियान के लिए भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से सम्मानित किया। इसी कमान के ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव को मात्र 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र से नवाजा गया।

कैप्टन सौरभ कालिया को कोई नहीं भुला सकता यदि यह कहा जाए कि विजय दिवस की गाथा का पहला पन्ना यहीं से शुरू होता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हिमाचल के इस सपूत ने कारगिल युद्ध शुरू होने से पहले ही अपनी जान देश के लिए कुर्बान कर दी। 5 मई 1999 का ही वह दिन था जब कैप्टन कालिया लद्दाख की एक पोस्ट पर अपने 5 अन्य साथियों के साथ गश्त कर रहे थे और उसी समय पाकिस्तानी फौज ने इन्हें बंदी बना लिया। 20 दिनों तक कैद में रखने के साथ इनके साथ तरह-तरह से अत्याचार किए गए। 

उनके शरीर में जलती सिगरेट दागी गई, कानों में लोहे की गरम सलाखें डाल दी, शारीरिक यातनाएं दी गई। उनके शव को बुरी तरह से क्षत-विक्षत कर दिया गया, पहचान मिटाने के लिए चेहरे व शरीर पर धारदार हथियारों से कई बार प्रहार किया गया। कई निजी अंग काट दिए थे। देश के लिए अपनी संतान द्वारा शहादत देना हर किसी माता-पिता के लिए गर्व की बात होती है लेकिन जिस तरह कैप्टन कालिया से अमानवीय व्यवहार हुआ वह किसी के भी सीने को छलनी कर सकता है।
 

आज कारगिल युद्ध को 23वर्ष पूरे हो चले। यह बेहद गौरव की बात है कि देश इस युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों को विजय दिवस मनाकर याद कर रहा है। देश का सैनिक जब सरहद पर होता है तो मातृभूमि ही उसके लिए उसका घर परिवार आदि सबकुछ होता है, इसकी हिफाज़त के लिए वह अपने प्राणों तक का बलिदान दे देता है। विजय दिवस एक दिवस मात्र ही नहीं यह सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा दिवस भी है।


कारगिल युद्ध में मुख्य भूमिका निभाने वाले ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर कारगिल युद्ध के बारे में बताते हुए कहते हैं कि..
 

कारगिल युद्ध में मेरे पास 18 ग्रेनडियर की कमान की थी हमारी यूनिट ने तोलोलिंग की पहाड़ी और करगिल की पहाड़ी टाईगर हिल पर विजय पताका फहराई थी। 18 ग्रेनडियर की इस यूनिट को 52 वीरता पुरस्कार मिले थे  जो अब तक का मिलट्री इतिहास है। जब तोलोलिंग पर दुश्मन के साथ संघर्ष चल रहा था तो हमारे उप-कमान अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल आर विश्वनाथन मेरी ही गोद में वीरगति को प्राप्त हुए। इन्हें इनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस दृश्य को याद करूं तो कारगिल का युद्ध इतना कठिन था कि वहां छिपने के लिए खाली व सूखी पहाड़ियों के अलावा तिनका तक भी नहीं था। 

रात का समय था पाकिस्तान ने जब मशीनगन के ऊपर हमला किया तो उस लड़ाई में मेरे साथ अन्य  9 जवान शहीद हुए इसमें कर्नल विश्वनाथन भी थे इन्हें भी एक गोली लगी और बड़ी मुश्किल से इन्हें खींच कर नीचे लाए व एक पत्थर के नीचे ले गए। खून बह रहा था लेकिन मैं इन्हें सहला रहा था। रौशनी का न तो कोई प्रबंध था न ही रौशनी जला सकते थे यह भी कारण था कि विश्वनाथन को वह प्राथमिक उपचार नहीं मिल सका जो हम उन्हें दे सकते थे इसका कारण यह भी था कि सामने से गोलियों की बौछारें हो रही थी।

इन्होंने अंतिम सांसे मेरी ही गोद में ली। पूरी कारगिल की लड़ाई में ये सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे जो शहीद हुए। वैसे तो हिमाचल के 52 वीर योद्धा शहीद हुए हैं और हिंदुस्तान के 527 रणबांकुरों ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है लेकिन सबसे वरिष्ठ शहीद होने वाले अधिकारी कर्नल विश्वनाथन थे।

इस हमले में मैं भी इनके साथ में था और जब दोनों तरफ़ से गोलियों व गोलों से जोरदार हमला हो रहा था तो मेरे आगे सूबेदार रणधीर सिंह थे, विश्वनाथन जी को जब गोली लगी तो मैंने सूबेदार रणधीर सिंह को बोला की आगे बढ़ें और इन्हें (विश्वनाथन) पीछे खींचें तथा आप आगे बढ़ें लेकिन तभी देखा कि सूबेदार रणधीर को भी गोली लग चुकी है और ये भी शहीद हो चुके थे।

हम बिलकुल साथ-साथ आगे सरक रहे थे। इसी तरह मेरे एक हवलदार राम कुमार थे जो रेडियो आपरेटर थे उनका हैंडसेट मेरे हाथ में था और ये मेरे पीछे थे मैंने देखा कि हैंडसेट मुझे पीछे खींच रहा है आगे नहीं आ रहा जबकि रणधीर शहीद हो चुका है लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ रहा हूं तब पीछे मुडकर देखा तो पाया कि हवलदार राम कुमार भी शहीद हो चुका है। 
 

इसी तरह एक मेजर राजेश अधिकारी थे जिनकी शादी को अभी 6 माह ही हुए थे वे जब तोलोलिंग की लड़ाई में दुश्मन सैनिकों के साथ गुत्थमगुथा हो रहे थे तो मैं भी इनसे बात करना चाह रहा था लेकिन आपरेटर इन तक नहीं पहुंच पा रहा था ऑपरेटर ने कहा कि साहब बहुत गोलियां आ रही हैं इसलिए मैं आपकी बात मेजर साहब से नहीं करवा सकता उसी समय जब इससे बात हो रही थी तो रेडियो सेट पर चीखने की जोरदार आवाज आई "ओ मां..." और पता लगा कि मेरे से बात करते-करते इस रेडियो ऑपरेटर को भी गोली लगी है तथा ये भी शहीद हो गया है। मेजर राजेश अधिकारी भी बहादुरी से संघर्ष करते हुए शहीद हो गए। उन्हें भी मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। 


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Monday, June 19, 2023

9th International Yoga Day (21 June 2023)

 

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International Yoga Day 2023: History, significance, theme of the day

History:Since its establishment in 2015, June 21 has been designated as the International Day of Yoga, aimed at promoting awareness of the enduring benefits of the ancient practice known as yoga. This year marks the 9th edition of the International Day of Yoga, and on June 21, Prime Minister Narendra Modi will lead a yoga session at the UN Headquarters for the first time.

Theme for International Yoga Day 2023:
The theme chosen for this year's International Day of Yoga 2023 is "Yoga for Vasudhaiva Kutumbakam," which beautifully encapsulates our collective aspiration for "One Earth, One Family, One Future."


History of International Yoga Day 2023:

Prime Minister Narendra Modi proposed the idea of a dedicated yoga day during his address to the 69th session of the UN General Assembly in 2014. On December 11, 2014, all 193 UN member states unanimously agreed to observe the International Day of Yoga on June 21. The inaugural celebration took place on June 21, 2015.


Significance of International Yoga Day 2023:

The primary objective of the International Day of Yoga is to raise awareness about yoga as a holistic practice for mental and physical well-being. This observance holds great importance in shedding light on the importance of psychological and physical wellness in today's world.


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