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Sunday, July 31, 2022

मुंशी प्रेम चंद (उपन्यासकार)142 वीं वर्षगांठ (31 जुलाई)



 *मुंशी प्रेम चन्द*

भारतीय साहित्य के हिंदी और उर्दू के सबसे बड़े कथा लेखक प्रेमचंद की कलम ने कभी काल्पनिक दुनिया की उड़ान नहीं भरी, जो भी लिखा जमीनी सच्चाई और आम आदमी के चरित्र को उजागर किया. यही वजह है कि उनकी हर कथा, हर कहानी का एक-एक पात्र आज भी जीवंत लगता है. उपन्यास सम्राट के नाम से विभूषित प्रेमचंद अकेले ऐसे लेखक हैं, जिन्हें आज का युवा भी पढ़ना पसंद करता है, उसके पास अगर जेन ऑस्टिन, जॉन मिल्टन, हेरॉल्ड पिंटर की पुस्तक है तो प्रेमचंद की निर्मला, गोदान और कफन भी अवश्य होगी. आज महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं वर्षगांठ पर उनकी कुछ ऐसी ही पुस्तक का सार आप सभी से साझा कर रहे हैं. लेकिन उससे पहले उनकी पृष्ठभूमि पर भी एक नजर डालेंगे.


उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस (आज वाराणसी) के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता अजायब राय डाकखाने में मुंशी थे और माँ आनंदी देवी एक गृहस्थ महिला थीं. प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. उनकी आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई थी. उन्होंने 300 से अधिक उपन्यास एवं कहानियां लिखे. उनकी रचना सेवासदन पर फिल्म बनी, जिसका पारिश्रमिक उन्हें साढ़े सात सौ रुपये मिले थे. इसके बाद उनकी कहानी पर मिल (मजदूर) एवं गोदान फिल्म बनीं, लेकिन फिल्मी दुनिया रास नहीं आयी और वे हंस के प्रकाशन से जुड़ गये. अंततः 8 अक्टूबर 1936 में वाराणसी में मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया.


*कर्मभूमि (1932)*

साल 1930 में लिखित, प्रेमचंद की यह कहानी हिन्दू मुस्लिम एकता और अंग्रेजी सरकार द्वारा उनके शोषण को रेखांकित करती है, जिसकी वजह से भारत का विभाजन हुआ. वस्तुत: कर्मभूमि की कहानी शांति और अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का समर्थन करती है. यह कथा सामाजिक बदलाव, त्याग और विचारधारा के टकराव और मानव प्रकृति की बात करती है.


*कफन*


कफ़न भी प्रेमचंद की उत्कृष्ट कथाओं में एक है. पिता-पुत्र यानी घीसू और माधव की जोड़ी के माध्यम से, प्रेमचंद ने समाज के उन लोगों को लेखनीबद्ध करने का प्रयास किया है, जो कामचोर हैं, और हमेशा अपनी असफलताओं का बहाना बनाकर जीवन गुजारते हैं. कहानी अपने रोमांच के शिखर पर उस समय पहुंचती है, जब दोनों पिता-पुत्र पैसों को गैर-जिम्मेदारी और मानवीय बेशर्मी की सीमा पार कर जाते हैं. जो उन्हें गांव वाले घीसू गर्भवती पत्नी के पेय और भोजन के लिए दिया था या कफन खरीदने के लिए दिया था.


*गबन*


गबन की कहानी समाज के उस आम व्यक्ति का जीवन चरितार्थ करती है, जो पत्नी के गहने पाने के लिए अंतहीन इच्छा के पीछे भागता है, और भागते-भागते कब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता चला जाता है कि उसे पता ही नहीं चल पाता, कि वह कहां से कहां पहुंच गया. प्रेमचंद कथा के माध्यम से दर्शाते हैं कि मानव में लालच की कोई सीमा नहीं होती. हालांकि हर आदमी कमोबेस लालची प्रवृत्ति का होता है. कुछ कम होते हैं तो कुछ ज्यादा. कहानी का मूल सार है कि आभूषण की अतृप्त भूख को मिटाने के लिए मनुष्य अपने नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों को गिरवी रखने से नहीं हिचकता.


*निर्मला*


प्रेमचंद की यूं तो सभी कथाएं कालजयी हैं, लेकिन निर्मला को लेकर शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि यह कहानी समय से इतने आगे की भी हो सकती है. कहानी की मुख्य नायिका निर्मला एक किशोर वय की लड़की है, जिसकी शादी एक वृद्ध व्यक्ति से करवा दी जाती है. बेबसी औऱ दहेज प्रथा की शिकार निर्मला ना केवल एक महिला की पीड़ा, विवशता झेलती है, बल्कि पुरुष प्रधान समाज की उन रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का भी सामना करती है, जो आये दिन उस पर प्रहार करता रहता है. निर्मला के माध्यम से कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने भारत की सबसे बुरी प्रथा दहेज पर हमला किया है.


*ईदगाह*


ईदगाह एक बच्चे और उसकी दादी के मर्मान्तक रिश्ते को दर्शाता है. 5 साल का मासूम हामिद अपनी दादी के साथ रहता है. दादी बामुश्किल उसके लिए दो वक्त का खाना खिला पाती है. एक बार वह ईद के दिन अन्य बच्चों के साथ ईदगाह जाकर नमाज अदा करता है. इसके बाद बच्चे मेले का आनंद उठाते हैं. कोई खिलौने औऱ मिठाइयां खरीदता है. हामिद को भी दादी ने जोड़-तोड़ कर ईदी दी थी. वह मिठाई की दुकान पर रुकता है, फिर आगे बढ़कर खिलौने की दुकान पर जाता है. अंततः वह उस दो पैसे से दादी के लिए चिमटा खरीदता है. क्योंकि उसने कई बार देखा था कि हाथ से रोटियां सेकते समय दादी के हाथ जल जाते थे. यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और बलिदानों के लिए एक श्रद्धांजलि है जो लोग अपने प्रियजनों के लिए करते हैं.

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