Monday, September 25, 2023

मुंशी प्रेम चंद (हिन्दी उपन्यासकार )

 

 


नाम

मुंशी प्रेमचंद

मूल नाम

धनपत राय श्रीवास्तव

उर्दू भाषा की रचनाओं में नाम

नवाबराय

जन्म

31 जुलाई, 1880

जन्म का स्थल

लमही गांव, जिला-वारणशी, उत्तरप्रदेश

पिता का नाम

अजायबराय

माता का नाम

आनन्दी देवी

मृत्यु

8 अक्टूबर 1936

पेशा

लेखक तथा अध्यापक

भाषा

हिंदी तथा उर्दू

पत्नी

शिवरानी देवी

प्रमुख रचनाएँ

सेवासदन, गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दरोगा इत्यादि

विधाएँ

निबंध, नाटक, उपन्यास, कहानी


प्रेमचंद के जीवन का संक्षिप्त विवरण

मुंशी प्रेमचंद जी का असली नाम (Munshi premchand real name) धनपत राय श्रीवास्तव जी है जो की प्रेमचंद के नाम से जाने जाते थे, इनका जन्म 31 जुलाई 1880 तथा मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई थी। ये हिंदी तथा उर्दू के प्रसिद्ध तथा सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार तथा कहानीकारक थे। इन्होने प्रेमाश्रम, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, गोदान, गबन, इत्यादि लगभग डेढ़ दर्जन के लगभग उपन्यास लिखे हैं तथा पूस की रात, बड़े घर की बेटी, कफन, पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, बूढी काकी जैसे तीन सौ से भी अधिक कहानियों को उनके द्वारा लिखे गए हैं।

 

प्रेम चंद जी का जन्म वारणशी जिले के लमही गांव के कायस्थ परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था, उनके पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो की लमही गाँव में डाक मुंशी थे तथा उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था। इनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था तथा इनको नवाब राय तथा मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। प्रेम चंद जी हिंदी तथा उर्दू के एक महान लेखक थे, उपन्यास के क्षेत्र में इनका अमूल्य योगदान को देखकर बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय जी ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर सम्बोधित किया। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू तथा फ़ारसी भाषा में हुई।

जब प्रेमचंद जी की उम्र 7 साल थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया था और 16 वर्ष की उम्र में उनके पिता की भी मृत्यु हो गयी जिस कारण उनका जीवन काफी संघर्षो से गुजरा है। जब प्रेमचंद जी की उम्र 15 वर्ष थी तब पिता के द्वारा उनका बाल विवाह करवा दिया गया जो की आगे चलकर सफल नहीं हो सका। प्रेमचंद जी विधवा विवाह के बहुत अधिक समर्थन वादी थे इसलिए उन्होंने 1906 में शिवरानी देवी जी से किया। उनकी तीन संताने भी थी जिनका नाम श्रीपत रायअमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव था। इनको बचपन से पढ़ने का बहुत ही शोक था, 13 वर्ष की आयु में ही इन्होने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था।

1898 में इनके द्वारा मैट्रिक की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद वह किसी स्थानीय विद्यालय में शिक्षक के पद पे नियुक्त हो गए। शिक्षक की नौकरी के साथ साथ उन्होंने पढाई जारी रखी और 1990 में उन्होंने अंग्रेजी, फ़ारसी, दर्शन तथा इतिहास के साथ इंटर उत्तीर्ण किया। बाद में प्रेमचंद जी के द्वारा 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी तथा इतिहास को लेकर बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की। सन 1919 में बी.ए. को उत्तीर्ण करने के बाद उनको शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त कर दिया गया।

 

 

मुंशी प्रेमचंद जी का साहित्यिक जीवन

वर्ष 1901 से ही प्रेमचंद जी का साहित्यिक जीवन शुरू हो गया था, शुरुआत में वो नवाब रे के नाम से उर्दू में लिखा करते थे, उनका पहला उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद है यह धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास का हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। मुंशी प्रेमचंद जी के द्वारा दूसरा उपन्यास हमखुर्मा व हमसवाब के नाम से प्रकाशित हुआ जो की हिंदी में प्रेमा नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। 1908 में इनके द्वारा पहला कहानी संग्रह सोजे वतन जो की देशभक्ति की भावना से परिपूर्ण था प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में देशभक्ति की भावना होने के कारण अंग्रेजों के द्वारा इस संग्रह कोप्रतिबंधित कर लिया गया तथा इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर ली गयी और भविष्य में नवाब राय को न लिखने की हिदायत दी गयी।

इसी कारणवश उन्होंने अपना नाम नवाबराय से बदलकर प्रेमचंद रख लिया था, यह नाम उनको दयानारायन निगम द्वारा दिया गया था। प्रेमचंद नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी” जमाना पत्रिका में 1910 में प्रकाशित हुई। 1915 में उस समय की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसंबर में उनकी पहली कहानी सौतनाम से प्रकाशित हुई। इसके बाद 1918 में उनका पहला उपन्यास सेवासदन प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के अत्यधिक लोकप्रियता के कारण प्रेमचंद जी को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया। इनके द्वारा लगभग 300 कहानिया तथा डेढ़ दर्जन उपन्यास हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषा में लिखे गए।

कहानी

प्रेमचंद जी के अधिकतम कहानियों में मध्यम तथा निम्न श्रेणी के का चित्रण किया गया हैडॉ॰ कमलकिशोर गोयनका जी के द्वारा मुंशी प्रेमचंद जी की सभी हिंदी उर्दू कहानियों को रचनावली नाम से प्रकाशित किया गया है। इनके अनुसार प्रेमचंद जी के द्वारा कुल 301 कहानियां लिखी गयी हैं इनमे से भी 3 अप्राप्य हैं। मुंशी प्रेमचंद जी का पहला कहानी संग्रह सोजे वतन के नाम से प्रकाशित हुआ।

नाटक

प्रेमचंद जी के द्वारा संग्राम, कर्बला तथा प्रेम की वेदी जैसे नाटकों की रचना की। ये नाटक शिल्प तथा संवेदना के स्तर पर लेकिन उन्हें नाटकों में कहानियो तथा उपन्यासों के जितनी सफलता नहीं मिल पाई।












*मुंशी प्रेम चन्द*

भारतीय साहित्य के हिंदी और उर्दू के सबसे बड़े कथा लेखक प्रेमचंद की कलम ने कभी काल्पनिक दुनिया की उड़ान नहीं भरी, जो भी लिखा जमीनी सच्चाई और आम आदमी के चरित्र को उजागर किया. यही वजह है कि उनकी हर कथा, हर कहानी का एक-एक पात्र आज भी जीवंत लगता है. उपन्यास सम्राट के नाम से विभूषित प्रेमचंद अकेले ऐसे लेखक हैं, जिन्हें आज का युवा भी पढ़ना पसंद करता है, उसके पास अगर जेन ऑस्टिन, जॉन मिल्टन, हेरॉल्ड पिंटर की पुस्तक है तो प्रेमचंद की निर्मला, गोदान और कफन भी अवश्य होगी. आज महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं वर्षगांठ पर उनकी कुछ ऐसी ही पुस्तक का सार आप सभी से साझा कर रहे हैं. लेकिन उससे पहले उनकी पृष्ठभूमि पर भी एक नजर डालेंगे.


उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस (आज वाराणसी) के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता अजायब राय डाकखाने में मुंशी थे और माँ आनंदी देवी एक गृहस्थ महिला थीं. प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. उनकी आरंभिक शिक्षा फारसी में हुई थी. उन्होंने 300 से अधिक उपन्यास एवं कहानियां लिखे. उनकी रचना सेवासदन पर फिल्म बनी, जिसका पारिश्रमिक उन्हें साढ़े सात सौ रुपये मिले थे. इसके बाद उनकी कहानी पर मिल (मजदूर) एवं गोदान फिल्म बनीं, लेकिन फिल्मी दुनिया रास नहीं आयी और वे हंस के प्रकाशन से जुड़ गये. अंततः 8 अक्टूबर 1936 में वाराणसी में मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया.


*कर्मभूमि (1932)*

साल 1930 में लिखित, प्रेमचंद की यह कहानी हिन्दू मुस्लिम एकता और अंग्रेजी सरकार द्वारा उनके शोषण को रेखांकित करती है, जिसकी वजह से भारत का विभाजन हुआ. वस्तुत: कर्मभूमि की कहानी शांति और अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का समर्थन करती है. यह कथा सामाजिक बदलाव, त्याग और विचारधारा के टकराव और मानव प्रकृति की बात करती है.


*कफन*


कफ़न भी प्रेमचंद की उत्कृष्ट कथाओं में एक है. पिता-पुत्र यानी घीसू और माधव की जोड़ी के माध्यम से, प्रेमचंद ने समाज के उन लोगों को लेखनीबद्ध करने का प्रयास किया है, जो कामचोर हैं, और हमेशा अपनी असफलताओं का बहाना बनाकर जीवन गुजारते हैं. कहानी अपने रोमांच के शिखर पर उस समय पहुंचती है, जब दोनों पिता-पुत्र पैसों को गैर-जिम्मेदारी और मानवीय बेशर्मी की सीमा पार कर जाते हैं. जो उन्हें गांव वाले घीसू गर्भवती पत्नी के पेय और भोजन के लिए दिया था या कफन खरीदने के लिए दिया था.


*गबन*


गबन की कहानी समाज के उस आम व्यक्ति का जीवन चरितार्थ करती है, जो पत्नी के गहने पाने के लिए अंतहीन इच्छा के पीछे भागता है, और भागते-भागते कब भ्रष्टाचार के दलदल में फंसता चला जाता है कि उसे पता ही नहीं चल पाता, कि वह कहां से कहां पहुंच गया. प्रेमचंद कथा के माध्यम से दर्शाते हैं कि मानव में लालच की कोई सीमा नहीं होती. हालांकि हर आदमी कमोबेस लालची प्रवृत्ति का होता है. कुछ कम होते हैं तो कुछ ज्यादा. कहानी का मूल सार है कि आभूषण की अतृप्त भूख को मिटाने के लिए मनुष्य अपने नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों को गिरवी रखने से नहीं हिचकता.


*निर्मला*


प्रेमचंद की यूं तो सभी कथाएं कालजयी हैं, लेकिन निर्मला को लेकर शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि यह कहानी समय से इतने आगे की भी हो सकती है. कहानी की मुख्य नायिका निर्मला एक किशोर वय की लड़की है, जिसकी शादी एक वृद्ध व्यक्ति से करवा दी जाती है. बेबसी औऱ दहेज प्रथा की शिकार निर्मला ना केवल एक महिला की पीड़ा, विवशता झेलती है, बल्कि पुरुष प्रधान समाज की उन रीति-रिवाजों एवं परंपराओं का भी सामना करती है, जो आये दिन उस पर प्रहार करता रहता है. निर्मला के माध्यम से कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने भारत की सबसे बुरी प्रथा दहेज पर हमला किया है.


*ईदगाह*


ईदगाह एक बच्चे और उसकी दादी के मर्मान्तक रिश्ते को दर्शाता है. 5 साल का मासूम हामिद अपनी दादी के साथ रहता है. दादी बामुश्किल उसके लिए दो वक्त का खाना खिला पाती है. एक बार वह ईद के दिन अन्य बच्चों के साथ ईदगाह जाकर नमाज अदा करता है. इसके बाद बच्चे मेले का आनंद उठाते हैं. कोई खिलौने औऱ मिठाइयां खरीदता है. हामिद को भी दादी ने जोड़-तोड़ कर ईदी दी थी. वह मिठाई की दुकान पर रुकता है, फिर आगे बढ़कर खिलौने की दुकान पर जाता है. अंततः वह उस दो पैसे से दादी के लिए चिमटा खरीदता है. क्योंकि उसने कई बार देखा था कि हाथ से रोटियां सेकते समय दादी के हाथ जल जाते थे. यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और बलिदानों के लिए एक श्रद्धांजलि है जो लोग अपने प्रियजनों के लिए करते हैं.



प्रेमचंद जी का जन्म कब हुआ ?

प्रेम चंद जी का जन्म वारणशी जिले के लमही गांव के कायस्थ परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था।

मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु कब हुई ?

मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु 8 अक्टूबर 1936 को हुई थी।

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ कौन कौन सी हैं ?

मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ सेवासदन, गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दरोगा इत्यादि थी।

मुंशी प्रेमचंद जी की शादी किससे हुई थी ?

जब प्रेमचंद जी की उम्र 15 वर्ष थी तब पिता के द्वारा उनका बाल विवाह करवा दिया गया जो की आगे चलकर सफल नहीं हो सका। प्रेमचंद जी विधवा विवाह के बहुत अधिक समर्थन वादी थे इसलिए उन्होंने 1906 में शिवरानी देवी जी से किया।

मुंशी प्रेमचंद के माता पिता का नाम क्या था ?

मुंशी प्रेमचंद के पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो की लमही गाँव में डाक मुंशी थे तथा उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था।



Thursday, September 21, 2023

हिन्दी भाषा प्रश्नोंतरी (हिन्दी पखवाड़ा)

               हिन्दी प्रश्नोंतरी में भाग लेने के लिए इमेज पर क्लिक करें 👇 👉हिन्दी भाषा प्रश्नोंतरी 

 



Tuesday, September 19, 2023

ऑनलाइन हिन्दी भाषा प्रश्नोंतरी प्रतियोगिता -2023 (शिक्षकों /कर्मचारियों के लिए )

 हिन्दी भाषा  ज्ञान प्रश्नोंतरी में भाग लेने के लिए नीचे दी गई इमेज को क्लिक करें ।                                                                                    



 

National Teachers Day

 

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Monday, August 28, 2023

NATIONAL SPORTS DAY 2023


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The National Sports Day in India is celebrated on 29 August 2023. This annual observance, held on August 29 in India, is a tribute to the enduring legacy of Major Dhyan Chand. The day also serves as a reminder for all of us to recall the contributions, determination and extraordinary achievements of the athletes and their influence in shaping societies.

What is the theme of National Sports Day 2023 ?

The theme of National Sports Day 2023 is "Sports are an enabler to an inclusive and fit society"

Significance of National Sports Day 2023

National Sports Day is also an occasion to raise awareness about the importance of sports and physical activity in our daily lives. Sports can help us stay fit and healthy, reduce stress, and build character. They can also teach us teamwork, discipline, and perseverance.

Here are some key aspects of its significance:

Promoting Physical Fitness

National Sports Day encourages people of all ages to embrace physical fitness. It emphasises the importance of regular exercise and a healthy lifestyle, addressing the growing concerns of sedentary living and lifestyle-related diseases.

Honouring Sporting Heroes
It’s a day to pay tribute to sporting legends like Major Dhyan Chand and numerous other athletes who have brought glory to the nation on the international stage. Their dedication, hard work, and sacrifices inspire the younger generation to pursue excellence in sports.

Fostering Sports Culture

This day serves as a catalyst for the development of a robust sports culture in India. It encourages the youth to participate actively in various sports and games, not just for competition but also for holistic personal growth.

Government Initiatives

On National Sports Day, the government often launches new sports-related initiatives, programs, and policies to support and nurture budding talent. These initiatives aim to provide better training facilities, financial support, and recognition to deserving athletes.

Unity in Diversity

Sports have the unique power to bring people together regardless of their background, language, or beliefs. National Sports Day showcases this unity, reminding us that in the world of sports, the only thing that matters is talent and determination.

National Sports Day 2023: History

The roots of National Sports Day in India can be traced back to the birth of one of its most revered sporting legends, Major Dhyan Chand, who went on to become one of the most popular names in the game of hockey.

Born on August 29, 1905, he started off his career with the British Indian Army regimental squad. His skills mesmerized the world, guiding India to three consecutive Olympic gold medals in 1928, 1932, and 1936.

In recognition of his unparalleled contributions to the realm of sports, the Government of India declared his birthday as National Sports Day in 2012, with the aim to inspire generations to come. This decision also focused on promoting sports and physical fitness among the masses.

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