Saturday, April 6, 2024

विश्व स्वास्थ्य दिवस (07 अप्रैल )

 

POSTER MAKING(SECONDARY SECTION)

POSTER MAKING (PRIMARY SECTION)

SCOUT AND GUIDE RALLY

SLOGAN WRITING COMPETITION(PRIMARY)

SLOGAN WRITING (SECONDARY)

POSTER MAKING COMPE

HEALTHY EATING CAMPAIGN




World Health Day :विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हर साल 7 अप्रैल को 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता फैलाना है। इस दिन दुनियाभर में WHO और अन्य स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा सेमिनार, नाटक और कई माध्यमों से लोगों के लिए स्वस्थ रहना क्यों जरूरी है, इसका महत्व समझाया जाता है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर WHO द्वारा दुनियाभर में फैल रही नई बीमारियां, उनका इलाज और इन बीमारियों का कारण क्या है, इसके बारे में लोगों को जानकारी दी जाती है। मेडिकल के क्षेत्र में नई खोज, नई दवाओं और नए टीकों की खोज के बारे में भी लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।

इतिहास : विश्व स्वास्थ्य दिवस के इतिहास की बात करें, तो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस दिन को मनाने का प्रस्ताव 1948 में रखा था। दुनियाभर में बढ़ते बीमारियों के मामलों को देखते हुए, लोगों को सेहत के प्रति जागरूक करने के लिए WHO ने इस दिन को मनाने का प्रस्ताव रखा था। WHO के प्रस्ताव के बाद लगभग 2 साल तक दुनियाभर के कई देशों ने इस पर विचार किया। अंत में सन 1950 में 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाया गया। 
तब से हर साल अलग-अलग थीम्स पर इस दिन को मनाया जाता है। WHO का कहना है कि स्वास्थ्य मानव का बुनियादी अधिकार है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को बिना किसी आर्थिक परेशानी के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करवाना है, ताकि सब निरोग रह सकें। विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम हर साल एक अनोखी थीम पर विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाया जाता है। 
WHO ने इस साल "माय हेल्थ माय राइट" थीम के साथ विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाने का फैसला किया है। माय हेल्थ माय राइट थीम इस बात को दर्शाता है कि स्वास्थ्य ही मानव के जीवन की असली बुनियाद है। साथ ही यह थीम यह भी दर्शाती है कि आपकी सेहत आपका हक है। जो लोग बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहे हैं यह थीम उन लोगों के लिए बहुत ज्यादा खास है। 
WHO का मानना है कि किसी व्यक्ति की आर्थिक परिस्थितियां कैसे भी क्यों न हो, स्वास्थ्य सेवाएं मिलना उसका अधिकार है। इन्हीं कारणों से दुनियाभर के देशों की सरकार लोगों के फ्री योजनाएं लाती है, ताकि किसी की जान इलाज न होने की वजह से न जाए। विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर केन्द्रीय विद्यालय परिवार की और से हम सभी विद्यार्थियों से अनुरोध  है कि वह एक प्रण लें, कि वह रोजाना स्वास्थ्य से जुड़ी एक एक्टिविटी जरूर करें। आप चाहें तो एक्सरसाइज, योग या फिर फिजिकल एक्सरसाइज को अपने रूटीन का हिस्सा बना सकते हैं। इसके अलावा आप हेल्दी डाइट के जरिए भी खुद को हेल्दी रख सकते हैं।

Friday, March 29, 2024

पुस्तकोंपहार 2024-25

  




पुस्तकोपहार उत्सव 2024


केंद्रीय विद्यालय संगठन ने वर्ष 2016 में पुस्तकोपहार कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों द्वारा पिछले सत्र की पाठ्यपुस्तक अन्य विद्यार्थियों को भेंट स्वरूप प्रदान की जाती है   जिससे पुरानी पाठ्य पुस्तकों का  पुनर्प्रयोग हो सके और पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके।

अत: पिछले वर्षों की भांति इस वर्ष भी केन्द्रीय विद्यालय प्रगति विहार के विद्यार्थियों  ने अपनी  पाठ्य पुस्तकों को बेचने की बजाय विद्यालय के विद्यार्थियों को भेंट स्वरूप प्रदान किया  जिससे जरूरतमंद विद्यार्थियों को पुस्तक प्राप्त हो सकी और  एक  कोशिश पर्यावरण को बचाने की विद्यार्थियों की द्वारा की गई  ।

Students donated their previous year textbooks to their juniors to 

  • Make Friends
  • Save Trees
  • Protect Environment
  • Reduce Global Warming
  • Help Others

Monday, January 22, 2024

Celebration of Prakram Diwas as Birth Anniversary of Netaji Subhash Chand Bose (QUIZ)

 





FOR BIOGRAPGY CLICK👆

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माँ का नाम 'प्रभावती' था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था।

आरम्भिक जीवन :

        नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई, और बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया। अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया।

        कटक के प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया। कॉलेज के प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का सुभाष के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में सुभाष ने विवेकानन्द साहित्य का पूर्ण अध्ययन कर लिया था। 1915 में उन्होंने इण्टरमीडियेट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।

        1916 में जब वे दर्शनशास्त्र (ऑनर्स) में बीए के छात्र थे किसी बात पर प्रेसीडेंसी कॉलेज के अध्यापकों और छात्रों के बीच झगड़ा हो गया सुभाष ने छात्रों का नेतृत्व सम्हाला जिसके कारण उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज से एक साल के लिये निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया। 49वीं बंगाल रेजीमेण्ट में भर्ती के लिये उन्होंने परीक्षा दी किन्तु आँखें खराब होने के कारण उन्हें सेना के लिये अयोग्य घोषित कर दिया गया।

        किसी प्रकार स्कॉटिश चर्च कॉलेज में उन्होंने प्रवेश तो ले लिया किन्तु मन सेना में ही जाने को कह रहा था। खाली समय का उपयोग करने के लिये उन्होंने टेरीटोरियल आर्मी की परीक्षा दी और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में प्रवेश पा गये। फिर ख्याल आया कि कहीं इण्टरमीडियेट की तरह बीए में भी कम नम्बर न आ जायें सुभाष ने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और 1919 में बीए (ऑनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था।

        पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। उन्होंने पिता से चौबीस घण्टे का समय यह सोचने के लिये माँगा ताकि वे परीक्षा देने या न देने पर कोई अन्तिम निर्णय ले सकें। सारी रात इसी असमंजस में वह जागते रहे कि क्या किया जाये।

        आखिर उन्होंने परीक्षा देने का फैसला किया और 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड चले गये। परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला न मिलने पर सुभाष ने किसी तरह किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया। इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस में पास होकर दिखाना था। सो उन्होंने 1920 में वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए पास कर ली।


राजनीतिक जीवन :

आजाद हिंद फौज की स्थापना 
        
        द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सितम्बर 1939, को सुभाष चन्द्र बोस ने यह तय किया कि वो एक जन आंदोलन आरंभ करेंगे। वो पुरे भारत में लोगों को इस आन्दोलन के लिए प्रोत्साहन करने लगे और लोगों को जोड़ना भी शुरू किया। इस आन्दोलन की शुरुवात की भनक लगते ही ब्रिटिश सरकार को सहन नहीं हुआ और उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को जेल में डाल दिया। उन्होंने जेल में 2 हफ़्तों तक खाना तक नहीं खाया। खाना ना खाने के कारण जब उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा तो हंगामे के डर से उन्हें घर में नज़रबंद कर के रखा गया।

        साल 1941 में, उनके इस House-arrest के दौरान सुभाष ने जेल से भागने की एक योजना बनाई। वो पहले गोमोह, बिहार गए और वहां से वो सीधा पेशावर(जो की अब पाकिस्तान का हिस्सा है) चले गए। उसके बाद वो जर्मनी चले गए और वहां हिटलर(Hitler) से मिले। सुभाष चन्द्र बोस बर्लिन में अपनी पत्नी एमिली शेंकल Emilie Schenkl के साथ रहते थे। 1943 में बोस ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी आर्मी को तैयार किया जिका नाम उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी (आजाद हिंद फौज) Indian National Army रखा।

        नेताजी सुभाष चंद्र बोस सर्वकालिक नेता थे, जिनकी ज़रूरत कल थी, आज है और आने वाले कल में भी होगी. वह ऐसे वीर सैनिक थे, इतिहास जिनकी गाथा गाता रहेगा. उनके विचार, कर्म और आदर्श अपना कर राष्ट्र वह सब कुछ हासिल कर सकता है, जिसका वह हक़दार है. सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्रता समर के अमर सेनानी, मां भारती के सच्चे सपूत थे। नेताजी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक थे, जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है।

        उनमें नेतृत्व के चमत्कारिक गुण थे, जिनके बल पर उन्होंने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान संभाल कर अंग्रेज़ों को भारत से निकाल बाहर करने के लिए एक मज़बूत सशस्त्र प्रतिरोध खड़ा करने में सफलता हासिल की थी। नेताजी के जीवन से यह भी सीखने को मिलता है कि हम देश सेवा से ही जन्मदायिनी मिट्टी का कर्ज़ उतार सकते हैं।

        उन्होंने अपने परिवार के बारे में न सोचकर पूरे देश के बारे में सोचा। नेताजी के जीवन के कई और पहलू हमे एक नई ऊर्जा प्रदान करते हैं। वे एक सफल संगठनकर्ता थे। उनकी बोलने की शैली में जादू था और उन्होंने देश से बाहर रहकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ चलाया। नेताजी मतभेद होने के बावज़ूद भी अपने साथियो का मान सम्मान रखते थे। उनकी व्यापक सोच आज की राजनीति के लिए भी सोचनीय विषय है।


तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा !

        मित्रों ! बारह महीने पहले “ पूर्ण संग्रहण ”(total mobilization) या “परम बलिदान ”(maximum sacrifice) का एक नया कार्यक्रम पूर्वी एशिया में मौजूद भारतीयों के समक्ष रखा गया था. आज मैं आपको पिछले वर्ष की उपलब्धियों का लेखा -जोखा दूंगा और आपके सामने आने वाले वर्ष के लिए हमारी मांगें रखूँगा. लेकिन ये बताने से पहले, मैं चाहता हूँ कि आप इस बात को समझें कि एक बार फिर हमारे सामने स्वतंत्रता हांसिल करने का स्वर्णिम अवसर है.अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में लगे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्हें कई मोर्चों पर बार बार हार का सामना करना पड़ा है.

        इस प्रकार दुश्मन बहुत हद्द तक कमजोर हो गया है, स्वतंत्रता के लिए हमारी लड़ाई आज से पांच साल पहले की तुलना में काफी आसान हो गयी है. इश्वर द्वारा दिया गया ऐसा दुर्लभ अवसर सदी में एक बार आता है.इसीलिए हमने प्रण लिया है की हम इस अवसर का पूर्ण उपयोग अपनी मात्र भूमि को अंग्रेजी दासता से मुक्त करने के लिए करेंगे.

        मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम को लेकर बिलकुल आशवस्थ हूँ, क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ. भारत के अन्दर भी एक विशाल आन्दोलन चल रहा है और हमारे करोडो देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए कष्ट सहने और बलिदान देने को तैयार हैं। मैं हमारे इस संघर्ष के परिणाम को लेकर बिलकुल आशवस्थ हूँ, क्योंकि मैं सिर्फ पूर्वी एशिया में मौजूद 30 लाख भारतीयों के प्रयत्नों पर निर्भर नहीं हूँ। भारत के अन्दर भी एक विशाल आन्दोलन चल रहा है और हमारे करोडो देशवासी स्वतंत्रता पाने के लिए कष्ट सहने और बलिदान देने को तैयार हैं।

        सुभाष चंद्र बोस के रहस्य पर किताब लिख चुके मिशन नेताजी के अनुज धर का कहना है कि भारत सरकार सब कुछ जानती है, लेकिन वह जान-बूझकर रहस्य से पर्दा नहीं उठाना चाहती। उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकार ने सूचना के अधिकार के तहत दायर उनके आवेदन पर नेताजी से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया। नेताजी के बारे में जानने के लिए जितनी भी जांच हुईं, उन सबमें कुछ न कुछ ऐसा आया, जिससे कहानी और उलझती चली गई।


विचार :

1. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा|
2. याद रखिये – सबसे बड़ा अपराध, अन्याय को सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना हैं|
3. यह हमारा फर्ज हैं कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं| हमें अपने त्याग और बलिदान से जो आजादी मिले, उसकी रक्षा करनी की ताकत हमारे अन्दर होनी चाहिए|
4. मेरा अनुभव हैं कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती|
5. जो अपनी ताकत पर भरोसा करता हैं, वो आगे बढ़ता है और उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं|
6. हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो सकता हैं लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही हैं| सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही हैं|

        नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक हैं जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है
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LIFE HISTORY OF NETAJI SUBHASH CHAND BOSE CLICK 👆



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Subhash Chandra Bose’s Role in Indian Independence Struggle

Ø     Bose was sent to prison in Mandalay for nationalist activities in 1925. He was released in 1927 and became the INC’s general secretary.

 Ø     He worked with Jawaharlal Nehru (Born on November 14 – 1889) and the two became the Congress Party’s young leaders gaining popularity among the people.

 Ø     He advocated complete Swaraj and was in favour of the use of force to gain it.

 Ø     He had differences with Gandhi and he wasn’t keen on non-violence as a tool for independence.

Ø     Bose stood for and was elected the party’s president in 1939 but was forced to resign due to differences with Gandhi’s supporters.

 Ø     Bose’s ideology tilted towards socialism and leftist authoritarianism. He formed the All India Forward Bloc in 1939 as a faction within the Congress.

 Ø     At the start of the Second World War, Bose protested against the government for not consulting Indians before dragging them into the war. He was arrested when he organised protests in Calcutta for the removal of the monument memorialising the Black Hole of Calcutta.

 Ø     He was released after a few days but was kept under surveillance. He then made his escape from the country in 1941 to Germany via Afghanistan and the Soviet Union. He had previously travelled to Europe and met with Indian students and European political leaders.

 Ø     In Germany, he met with the Nazi leaders and hoped to stage an armed struggle against the British to gain independence. He hoped to befriend the Axis powers since they were against his ‘enemy’, the British.

 Ø     He founded the Indian Legion out of about 4500 Indian soldiers who were in the British army and had been taken prisoners by the Germans from North Africa.

 Ø     In 1943, he left Germany for Japan disillusioned with the lukewarm German support for Azad Hind.

 Ø     Bose’s arrival in Japan revived the Indian National Army (Azad Hind Fauj) which had been formed earlier with Japanese help.

 Ø     Azad Hind or the Provisional Government of Free India was established as a government-in-exile with Bose as the head. Its headquarters was in Singapore. The INA was its military.

 Ø     Bose motivated the troops with his fiery speeches. His famous quote is, “Give me blood, and I shall give you freedom!”

 Ø     The INA supported the Japanese army in its invasion of northeast India and also took control of the Andaman and Nicobar Islands. However, they were forced to retreat by the British forces following the Battles of Kohima and Imphal in 1944.


BOOKS ON AND BY  NETAJI





RARE PICTURES OF SUBHASH CHAND BOSE




Saturday, January 13, 2024

NATIONAL YOUTH DAY QUIZ ON SWAMI VIVEKANAND BIRTH ANNIVERASRY

 

     ONLINE QUIZ ON THE OCCASSION OF BIRTH ANNIVERSARY OF SWAMI VIVEKANAND


ROAD SAFETY ONLINE QUIZ -13.01.2024

CLICK THE IMAGE BELOW 👇TO  PLAY THE QUIZ

Some key aspects of road safety knowledge:

Traffic Signs and Signals: Understanding the meaning of various traffic signs and signals is crucial for following traffic rules and regulations. This includes signs for speed limits, stop signs, yield signs, traffic lights, pedestrian crossings, and more.

Speed Limits: Knowing and adhering to speed limits is important for preventing accidents and maintaining control of the vehicle. Different areas may have different speed limits, such as residential zones, highways, and school zones.

Defensive Driving: Being aware of other drivers and anticipating potential hazards is a fundamental aspect of defensive driving. This includes maintaining a safe distance from other vehicles, using mirrors effectively, and being cautious at intersections.

Right of Way: Understanding who has the right of way in different situations, such as at intersections or when merging lanes, is vital for preventing collisions and ensuring smooth traffic flow.

Seat Belt Usage: Wearing seat belts is one of the simplest and most effective ways to protect oneself in a vehicle. Knowing how to properly wear and fasten seat belts is essential for all occupants of a vehicle.

Bicycle and Motorcycle Safety: Knowledge of specific safety measures for cyclists and motorcyclists, such as wearing helmets, using designated bike lanes, and being aware of blind spots, is vital for their protection on the road.

Emergency Preparedness: Being familiar with emergency procedures, such as what to do in the event of a breakdown, a tire blowout, or a collision, can help mitigate risks and ensure a swift and safe response.


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